इस खेती से रातो-रात हो जाओगे मालामाल, मेहनत बस एक बार की मुनाफा 70 साल का, बहुत सारे किसान यह मानते हैं कि उन्हें अच्छी आय केवल आम और अमरूद जैसे फलों की खेती से ही हो सकती है, लेकिन उन्हें इस बारे में जागरूक नहीं है कि आम और अमरूद के अलावा भी कई और बागवानी फसलें हैं, जिनसे उन्हें अच्छी कमाई कर सकती है। इनमें से एक फसल सुपारी है, जिसके खेती से किसानों को अच्छी आय प्राप्त करने का अवसर होता है। इसका खासियत यह है कि एक बार खेती शुरू करने के बाद, किसान 60 से 70 साल तक निरंतर मुनाफा कमा सकता है।
क्या है पूरी प्रोसेस

दुनियाभर में सुपारी की खेती काफी प्रसिद्ध है, और भारत में इसकी खेती सबसे ज्यादा होती है। कर्नाटक राज्य भारत में सुपारी की सबसे बड़ी उत्पादक राज्य है। सुपारी का उपयोग गुखटा और पान मसाला बनाने में किया जाता है, और इसका महत्व हिन्दू धर्म में भी होता है, जैसे की धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के समय। खुद सुपारी के पेड़ नारियल के पेड़ की तरह 60 से 70 फीट तक ऊँचा हो सकता है, और इसकी खेती का आरंभ करने के बाद, यह पेड़ 5 से 8 साल में फल देने लगता है। इसलिए, किसान इसकी खेती शुरू करने के बाद 60 से 70 साल तक नियमित रूप से मुनाफा कमा सकता है। इसकी खेती में अधिक लागत भी नहीं होती है।
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पीएच 7 से 8 के बीच
सुपारी की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी प्रदर्शन के लिए डूमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है, और इसके लिए पीएच 7 से 8 के बीच की मिट्टी अच्छी होती है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, केरल, और असम जैसे राज्यों में सुपारी की बड़ी मात्रा में खेती की जाती है।
निराई गुड़ाई
सुपारी के पौधों के जड़ों में गौबर कॉम्पोस्ट के रूप में खाद का उपयोग करना उपयुक्त होता है। सामान्यतः, इन्हें जून और जुलाई महीनों में रोपा जाता है, और सिंचाई के लिए नवम्बर से फरवरी के बीच या मार्च से मई में समय निकाल सकते हैं। इन पौधों की साल में 2 से 3 बार गुड़ाई की आवश्यकता होती है। सुपारी की मार्केट में कीमत किलोग्राम प्रति 400 से 500 रुपये होती है, और इसलिए सुपारी की खेती करने से किसान अच्छी आय कमा सकते हैं।
इन राज्यों में खेती का प्रचलन होता है:

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खुपारी की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन दोमत चिकमी मिट्टी इसके लिए अत्यधिक उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा, मिट्टी का पीएच स्तर 7 से 8 के बीच होना आवश्यक है। यह खुपारी की खेती के लिए पश्चिम बंगाल, केरल, और असम के अलावा कर्नाटक राज्य में भी व्यापक रूप से की जाती है। यहाँ एक विशेष बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सुपारी के बीज से पौधों की नर्सरी में उगाने की प्रक्रिया होती है। इसके बाद, तैयार पौधों को पहले से तैयार खेत में बोआ जाता है। सुपारी के खेत में उचित जल संप्रेषण की सुनिश्चित होनी चाहिए, और पौधों को हमेशा समान दूरी पर पंक्तियों में बोआ जाता है, ताकि सभी पौधों को समान रूप से खाद और पानी पहुंच सके, जिससे उनकी सुगंध वृद्धि हो सके।
किसान सुपारी की खेती से आच्छाधन कर सकते हैं

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सुपारी के पौधों के जड़ों में खाद के रूप में गोबर से बने कंपोस्ट का उपयोग करना उपयुक्त होता है। ज्ञान के अनुसार, जून और जुलाई महीनों में सुपारी के पौधों की बोनाई जानी चाहिए। वैसे, सुपारी की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि आप इच्छा करते हैं, तो नवंबर से फरवरी या मार्च से मई के बीच सिंचाई कर सकते हैं। सुपारी के पौधों को साल में 2 से 3 बार खाद देने की आवश्यकता होती है। यह बताना महत्वपूर्ण है कि बाजार में सुपारी की कीमत 400 से 500 रुपये प्रति किलोग्राम होती है, इसलिए किसान सुपारी की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।